भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को जयंती एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी को भगवान शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहा जाता है।
जो मनुष्य विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करने से सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चंद्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और यश पाते हैं।
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यह जयंती एकादशी को पद्मा / वामन और परिवर्तिनी /जलझूलनी और डोल ग्यारस एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसका यज्ञ करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। पापियों के पाप नाश करने के लिए इससे बढ़कर कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं।
विष्णु धर्मोत्तर पुराण का कहना है कि विधि-विधान से परिवर्तिनी एकादशी व्रत करने वाले को वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। जाने-अनजाने में हुए हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा है कि इस एकादशी पर व्रत और पूजा करने से भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्मा यानी त्रिदेवों की पूजा का फल मिल जाता है। ये व्रत हर तरह की मनोकामना पूरी करने वाला माना जाता है।
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